Monday, September 15, 2008

baithe hain rehguzar pe

कुछ गाने पता नहीं कैसे मन की कंदराओं में दब जाते हैं और उनकी याद बरसों तक नहीं आती ।

मेरे ख्‍याल से परसों की शाम थी जब अचानक ममता ने ये गाना गुनगुनाना शुरू कर दिया और मैं जो अपने किसी काम में या अपने ही ख्‍यालों में गुम था अचानक चौंक गया, हड़बड़ाकर पूछा--फिल्‍म कौन सी है । ममता बोलीं--भूल गए, चालीस दिन । ये ममता के पसंदीदा गानों में से एक है । वैसे भी फिल्‍म-संगीत के मामले में ममता की पसंद बड़ी ही सख्‍त है । मजाल है कि छायागीत में उनकी पसंद के दायरे से बाहर का कोई गाना घुसने की गुस्‍ताखी कर पाए ।

बहरहाल । इस गाने ने कई भूली बिसरी बातें याद दिला दीं ।

कुछ साल पहले मैंने ऐसे संगीतकारों के गाने जमा करने शुरू किये थे जिन्‍होंने बहुत ज्यादा काम नहीं किया । या जिन्‍हें संगीत के दमकते सितारों के बीच ठीक से शोहरत नहीं मिल पाई । बाबुल उन्‍हीं में से एक हैं । अगर सिलसिला बन पाया तो ऐसे संगीतकारों के गाने रेडियोवाणी के ज़रिए आप तक पहुंचाए जायेंगे । इंटरनेटी छानबीन के ज़रिए मुझे बाबुल के बारे में ये पता चला कि बाबलु और बिपिन मदनमोहन के सहायक हुआ करते थे । उन्‍होंने एक साथ 'सलाम-ए-मुहब्‍बत', 'चौबीस घंटे' और 'रात के राही' जैसी फिल्‍मों में संगीत दिया और फिर अपनी अलग अलग राहें चुन लीं ।

'चालीस दिन' वो पहली फिल्‍म थी जो दोनों के अलग होने के बाद बाबुल ने अकेले की थी । इस फिल्‍म का संगीत बड़ा ही कामयाब हुआ था । इस गाने के अलावा इस फिल्‍म में आशा भोसले का गाया गाना 'कहो आके बहार करे मेरा सिंगार' और मुकेश का गाया 'मैं दीवाना मस्‍ताना' जैसे गाने भी थे ।

आशा भोसले का गाया ये गीत एक अकेली नायिका के दर्द की आवाज़ है । इस गाने को लिखा है कैफी आज़मी ने और संभवत: ये फिल्‍म सन 1958 में आई थी । यहां सुनिए ये गीत ।

गाना बांसुरी की एक विकल तान से शुरू होता है । जिसे आगे बढ़ाते हैं ग्रुप वायलिन और फिर आशा जी की आवाज़ ।

बैठे हैं रहगुजर पर दिल का दिया जलाए

शायद वो दर्द जानें शायद वो लौट आएं ।

आकाश पर सितारे चल चल के थम गए हैं

शबनम के सर्द आंसू फूलों पे जम गए हैं

हम पर नहीं किसी पर ऐ काश रहम खाए

शायद वो दर्द जानें शायद वो लौट आएं 

बैठे हैं रहगुज़र पर ।।

राहों में खो गई हैं हसरत भरी निगाहें

कब से लचक रही हैं अरमान की नर्म बाहें

हर मोड़ पर तमन्‍ना आहट किसी की पाए

शायद वो दर्द जानें शायद वो लौट आएं

बैठे हैं रहगुज़र पे ।।

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