Thursday, November 27, 2008

अजमेर यात्रा की तस्‍वीरें-दूसरा भाग । सूफी परंपरा का इतिहास और ख्‍वाजा ग़रीब नवाज़ की कहानी ।

जैसा कि पिछली पोस्‍ट में अर्ज़ किया था कि अचानक अप्रत्‍याशित रूप से हम अजमेर हो आए । चूंकि आग्रह है इसलिए इस बार तफ़सील से सूफ़ी मत और ख्‍वाजा मोईनुद्दीन चिश्‍ती के बारे में बताने की 'कोशिश' की जा रही है ।

 

दक्षिण-एशिया में सूफ़ी परंपरा की चार शाखाएं प्रचलित हैं । चिश्‍तिया सिलसिला- जिसकी शुरूआत पश्चिमी अफ़ग़ानिस्‍तान के  हेरात या अरिया शहर में हुई थी । इस सिलसिले के संस्‍थापक थे 'अबू इशाक समी' । इस सिलसिले के सबसे मशहूर संत हुए हैं ख्‍वाजा मोईनुद्दीन चिश्‍ती, जो तेरहवीं शताब्‍दी में हुए थे । इस सिलसिले के दूसरे महत्‍त्‍वपूर्ण संत हैं हज़रत निज़ामुद्दीन औलिया (दिल्‍ली), फ़रीदुद्दीन गंजशकर (पाकपट्टन, पाकिस्‍तान), कुतुबुद्दीन बख्तियार काकी (दिल्‍ली) वग़ैरह ।

 

क़ा‍दरिया सिलसिला- ये सूफी परंपरा का सबसे पुराना सिलसिला है, जिसकी बुनियाद अब्‍दुल क़ादिर जीलानी ने रखी थी । कहते हैं कि इस सिलसिले का इतिहास पैग़ंबर हज़रत मोहम्‍मद तक जाता है । दक्षिण पूर्वी एशिया के अलावा ये सिलसिला पूर्वी और पश्चिमी अफ्रीक़ा तक फैला है ।

 

नक्‍‍शबंदी सिलसिला-इस सिलसिले का आग़ाज़ हज़रत बहाउद्दीन नक्‍शबंद बुख़ारी से होता है । इस सिलसिले की भी कई शाखाएं हैं, जैसे मकसूदी, ताहिरी, उवैसिया वग़ैरह ।

 

सुहरावर्दी सिलसिला- इस सिलसिले की शुरूआत हज़रत दिया-अल-दीन-अबू-नज़ीब-अस-सुहरावर्दी से होती है ।

 

तो चिश्‍तिया सिलसिले के फ़कीर थे हज़रत मोईनुद्दीन चिश्‍ती । जिनका जन्‍म सन 1141 में सिस्‍तान में हुआ था । जब वो पंद्रह बरस के थे तो उनके माता-पिता का देहान्‍त हो गया था । परिवार का फलों का एक बग़ीचा और पवन-चक्‍की थी । इन्‍हें 'ग़रीब नवाज़' क्‍यों कहा जाता है इसके पीछे भी एक दंत-कथा है । कहते हैं कि बचपन में ईद-उल-फित्र (मीठी ईद) के दिन वो अपने पिता के साथ नमाज़ अदा करने गए थे । वहां उन्‍होंने एक बच्‍चे को रोते हुए देखा तो इसकी वजह पूछी, उसने बताया कि ईद के दिन सब बच्‍चों ने नये कपड़े पहन रखे हैं । पर उसके पास नए कपड़े नहीं हैं । इसलिए वो रो रहा है । इतना सुनकर मोईनुद्दीन ने अपने कपड़े उस बच्‍चे को दे दिये और खुद पुराने कपड़े पहन लिये । इसके बाद उन्‍हें 'ग़रीब नवाज़' कहा गया ।

 

एक दिन जब मोईनुद्दीन पौधों को पानी दे रहे थे, तो उन्‍होंने एक बूढ़े को देखा । ये बुज़ुर्गवार शेख इब्राहीम क़ुन्‍दोज़ी थे । उन्‍हें एक पेड़ की छांह में बैठाकर मोईनुद्दीन ने एक पेड़ से तोड़कर ताज़े अंगूर खाने को दिये । बदले में बुज़ुर्गवार ने भी उन्‍हें कुछ खाने को दिया । कहते हैं कि इसके बाद मोईनुद्दीन को इलहाम हुआ, उन्‍होंने दुनियावी चीज़ों को छोड़ दिया और फ़कीर बन गए । इसके बाद वो सफ़र पर निकल पड़े । और आखि़रकार हज़रत उस्‍मान हरवानी के शिष्‍य बन गए ।

 

कहते हैं कि एक दिन सपने में उन्‍हें पैग़ंबर हज़रत मोहम्‍मद ने दर्शन दिये और उसके बाद उनके हुक्‍म से वो निकल पड़े दक्षिण एशिया की तरफ़ । कुछ दिन लाहौर में रहने के बाद वो अजमेर आ गये और फिर यहीं बस गए ।

 

मुग़ल बादशाह अकबर (1556-1605) के ज़माने में अजमेर एक बेहद महत्‍त्‍वपूर्ण तीर्थस्‍थल के रूप में मशहूर हुआ । मशहूर फिल्‍म 'मुग़ले-आज़म' में आपने देखा होगा किस तरह अकबर रेगिस्‍तान में पैदल चलकर अजमेर पहुंचे थे और ख्‍वाजा की बारगाह में उन्‍होंने मुराद मांगी और वो पूरी भी हुई थी ।

 

तो ये थी संक्षिप्‍त पृष्‍ठभूमि ग़रीब नवाज़ के बारे में । और अब अजमेर-यात्रा की तस्‍वीरों का दूसरा भाग--दरअसल सारी तस्‍वीरें इसी भाग में निपटानी है इसलिए मुमकिन है कि धीमे कनेक्‍शन में लोड होने में देर लगे । सभी तस्‍वीरों पर क्लिक करके उन्‍हें बड़ा किया जा सकता है । फिर याद दिला दें: सभी तस्‍वीरें मोबाइल कैमेरे से खींची गई हैं ।

 

ये हैं भिश्‍ती- जो वुज़ू के हौज़ में पानी भरते हैं ।

 

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ये ताकीद भी होती है अब इबादतगाहों में ।

बोर्ड पर लिखा है ज़ायरीन अपने मोबाइल और दीगर सामान की हिफ़ाज़त ख़ुद करें ।

 

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बड़े बड़े करें इबादत । छोटे बच्‍चे खेलें खेल ।

 

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रंग-बिरंगी तस्‍बीहें ( जाप करने वाली मालाएं )

 

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बंगाली बाबू यहां पधारें ।

लिखा है: पीर सैयद मजीद मियां । असग़र मंजिल अजेमर ।

 

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छोटी देग़ बड़ी देग़ ( दान के पैसों से बनता है लंगर )

 

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दरग़ाह के बाहर का हाल--गुलाबी 'बुढि़या के बाल'

 

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मंदी में मद्धम हैं दाम: तीन पांच और आठ रूपए में कुल्‍फी

 

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इन्‍होंने बड़ों-बड़ों को 'टोपियां' पहनाई हैं भाय

 

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सीढि़यां खुद बताती हैं वो कहां जा रही हैं ।

 

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कॉम्बिनेशन देखिए--एक तरफ स्‍टोव दूसरी तरफ सिंधी ज़बान की सीडीज़

 

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हम यहीं रूकते हैं आप दर्शन करके आईये ।

 

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ये है मंटू । फोटू खिंचाने की अदा देखिए ।

क्‍या बाल मज़दूरी वाक़ई खत्‍म हो गई है ।

 

 

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सोणा सोणा सोहन हलवा  

 

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चल खुसरो घर आपने । रिक्‍शा है तैयार

 

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